बचपन की एक कुत्छ घटनाएं, सम्भवत , उस समय की हैं जब मैं, पांच वर्ष से भी कम आयु का हूंगा! उस समय ना मेरे पास शब्द थे, ना कल्पना, ना विचार, ना ही किसी प्रकार का ज्ञान था ( very little perception ) , अपनी छोटी सी दुनिया में , संकुचित वातावरण में रहता था ! आज, उन घटनाओं को, आज के ज्ञान , शब्दावली, कल्पना तथा विचारों के आधार पर लिख कर विचित्र लग रहा है! नानाजी के यहाँ रहने का विवरण , पहले भी एक ब्लॉग में लिखा है !http://shubhkamna-davendra.blogspot.com/2011/07/my-naana-and-naani.html
यहाँ, बहुत सी घटनाओं में से केवल दो का विवरण देना चाहूँगा !
१. साधू बाबा का प्रसाद : हिन्दू इंटर कॉलेज की ओर खुलने वाले दरवाजे के पास धर्मशाला में , एक छोटे कमरे ( कोठरी)) में एक साधू बाबा रहते थे ! दैनिक धार्मिक किर्या के अनुसार ,प्रियेतेक प्रात : पूजा पाठ के पश्चात, आरती करते थे ! जैसे ही उनकी छोटी सी घंटी की सुन्दर धुवनी मुझे सुनायी पडती , मैं धीरे धीरे चल कर उनकी कोठरी के पास पहुंच जाता था ! मुझे , उस घंटी के बजने का इंतज़ार रहता और, शायद , साधू बाबा को भी मेरे आने का इंतज़ार रहता होगा ! आरती के बाद, वोह मुझे, एक बताशा और एक तुलसी दल , प्रशाद में देते , उसी का इंतज़ार रहता तथा उसी का लालच भी ! पीले रंग के कनेर के फूल भी उनके कमरे के सामने लगे थे , उनसे बहुत ही सुन्दर सुगंध आती थी जो आज भी मुझे महसूस होती है !
यहाँ, बहुत सी घटनाओं में से केवल दो का विवरण देना चाहूँगा !
१. साधू बाबा का प्रसाद : हिन्दू इंटर कॉलेज की ओर खुलने वाले दरवाजे के पास धर्मशाला में , एक छोटे कमरे ( कोठरी)) में एक साधू बाबा रहते थे ! दैनिक धार्मिक किर्या के अनुसार ,प्रियेतेक प्रात : पूजा पाठ के पश्चात, आरती करते थे ! जैसे ही उनकी छोटी सी घंटी की सुन्दर धुवनी मुझे सुनायी पडती , मैं धीरे धीरे चल कर उनकी कोठरी के पास पहुंच जाता था ! मुझे , उस घंटी के बजने का इंतज़ार रहता और, शायद , साधू बाबा को भी मेरे आने का इंतज़ार रहता होगा ! आरती के बाद, वोह मुझे, एक बताशा और एक तुलसी दल , प्रशाद में देते , उसी का इंतज़ार रहता तथा उसी का लालच भी ! पीले रंग के कनेर के फूल भी उनके कमरे के सामने लगे थे , उनसे बहुत ही सुन्दर सुगंध आती थी जो आज भी मुझे महसूस होती है !
२. नानी जी के बनाये पेड़े : नानी जी मिठाई बहुत अच्छी बनाती थी , विशेष कर पैदा ( Peda ) ; मुझे बहुत अच्छा लगता था ! जब भी मिल जाये खाने के लिए आतुर रहता ! मुझसे बचाकर नानी जी उसको , अलमारी मे सब से ऊपर के खाने में रखती थी ! एक दिन मैंने , एक बड़ी सी डंडी ली, अलमारी की बड़े परियास से चिटखनी खोली ! उसी डंडे से धीरे धीरे , पेड़े के बर्तन को नीचे गिराया , कल्पना नही थी कि वोह ऊपर से गिरेगा तथा सारे पेड़े जमीन पर गिर कर बिखर जाएँगे ! नानीजी, नाना जी, अम्मा , सभी लोग आगये ! मेरा कारनामा देखकर बहुत हंसे और बहुत सारा पियर किया ! Peda भी खूब आनन्द से खाया! बचपन की यह शरारत आज भी अछे से याद है!
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