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Friday, September 14, 2018

Scary moment: Flood in CHHOEYA River

बचपन की कुत्छ और पुरानी यादों में से यह घटना भी श्रावणी के अवसर पर गंगा स्नान तथा पूजा करने की है ! प्रितीयेक वर्ष की भांति , एक और किसि वर्ष , हम ( बाबाजी, दादी जी और मैं )  , दारानगर  गंज  गए थे ! पूजा पाठ , स्नान  आदि से  निपट के पश्चात , लगभग एक बजे  भोजन किया था ! हर साल की भांति  , दादी जी , आलू  , पूरी , अचार के साथ स्वदिस्थ  भोजन लाती थीं ! घर वापिस आने की तय्यारी कर रहे थे कि वर्षा  प्रारम्भ  हो  गयी ! वर्षा का वेग बढ़ता ही गया ! प्रितिक्षा करते रहे  कि वर्षा कम हो तो घर वापिस चलें ! वर्षा तो कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी , वोह तो बढती ही जा रही थी! विचार किया, बाबा जी ने कहा कि शाम होने से पहले  पहले निकल लेना उचित होगा ! येहां कोइ रहने का प्रबंध नहीं है अतह वर्षा में भीगते हुए ही हम लोग घर के लिए वापिस चल दिए ! गंज से, सिकन्दरपुर, रेहरुँवा ,गंदासपुर , होते हुए ,  चोव्न्क्पुरी  होते हुए घर जाना होता है ! येही बेलगाडी का उस समय , सब से उचित मार्ग  था ! गंदासपुर से आधा मील दूर गए थे कि छोएया नदी आ गयी ! भरी वर्षा के कारण , नदी तो पूरे उफान पर थी ! गढ़  गधगढ़ात के साथ, छोएये में अतियाधिक पानी , अतियाधिक गती से बहता जा रहा था !  कुत्छ देर प्रितिक्षा की ! शाम तो ढलती जा रही थी, रात्री का अन्धेरा आता जा रहा था! यही नदी जब प्रातः में आये थे तो सुखी पड़ी थी !
छोएया नदी बरसाती नदी है , जो यदि वर्षा ना हो तो लग भग खाली /सुखी ही रहती है! अधिक वर्षा के कारण, विशेषकर, यदि , गढ़वाल  ( हिमालया  के  पहाड़ का भाग)  में अधिक वर्षा हो जाये तो फिर छोएये में पानी आ जाता है! वहीं से छोएये का उद्गम है , और बिजनोर जिले में, उत्तर  से दक्षिण की ओंर  बहते हुए यह  रसूल भंवर अह्त्म्ली  के पास गंगा जी में मिल जाता है ! छोर्ये  पर  बड़े बड़े मार्गों पर तो छोटे पुल हैं परन्तु , छोटे छोटे रास्तों में कोई पुल या पुलिया नहीं है ! साधारण दिनों में सभी ऐसे ही नदी से हो कर चले जाते हैं!
अब तो रात लग भग हो ही चुकी थी, छोएया को पार करना असम्भव था !  सुखन  सिंह,  हमारी गाडी वाला तो छोयेया पार करने के लिए ही कहता रहा , परन्तु  , बाबा जी ने  निर्नियेय  लिया  कि वापिस चला जाये और गंदासपुर  में रात्री में विश्राम किया जाये ! गंदासपुर आ गये ,  हमारे किसान भाई भी बहुत खुश थे कि उन्हें , भगत जी ( बाबा जी को उनके किसान , भ्क्त्जी ही कह  कर स्म्भोतित  करते थे! ), की सेवा का अवसर मिलेगा !

सब ने मिल कर  हमारे  खाने, पीने , रात्री में सोने आदि का अपनी और से स्र्वौत्त्म  प्रभंध  किया ! मुझे तो  वहां
बहुत अछा लगा ! वर्षा तो रात भर होती ही रही ! गंदासपुर तथा उस रेहेनेवाले स्थान का वर्णन करूं तो एक और कहानी बन  जायेगी ! वहां का वातावरण , भीनी भीनी खुशबू ,  पशुओं  की  आवाजें , आदि, आदि ! घर कच्चे थे परन्तु बड़े बड़े और साफ़ सुथरे थे !
यदि हम लोगों ने नदी पार का प्रियस किया होता तो समभ्त , यह ब्लॉग लिखने का अवसर न मिलता, छोएया , हम को , गंगाजी में विलीन कर देता ! यह सोच कर तथा उस घटना को सोच कर भी , आज भी भय भीत हो जाता हूँ! भगवान, स्वम् , उचित मार्ग दिखा कर हमारी रक्षा करते हैं ! 

Wednesday, September 12, 2018

Scary moments; SHRAVANI PUJA AT DRA NAGAR GANJ

हमारे परिवार की परम्परा के अनुसार, हम लोग रक्षा बंधन का पर्व  नहीं मानते हैं ! प्र्तियेक वर्ष , बाबाजी, श्रावणी की पूजा के लिए दारानगर गंज जाते थे ! बेलगाडी से, मैं, दादीजी  और बाबा जी शीघ्र सवेरे ही गंज की यात्रा पर निकल जाते थे ! वहां जाकर गंगास्नान करते , फिर बाबा जी, अन्य  लोगों के साथ पूजा , हवन आदि करते थे! काफी लोग, विभिन, विभिन, स्थानों से श्रावणी पूजन के लिए यहाँ आते थे ! सभी लोग, गांगजी में खड़े होकर अपने अपने यज्ञोपवीत बदलते थे !
सावन का महीना  , गंगाजी तो अपने पूरे उफान पर होती हैं ! अत्येअधिक जल तथा  गति के साथ बहती हैं ! दुसरा छोर भी दिखाई नहीं देता है ! चारों  ओंर  जल ही जल दिखाई पड़ता है ! गंगाजी के किनारे अछे पक्के घाट बने हुए हैं ! सुरक्षा के लिए घाटों में कुत्छ सीढ़ियों के बाद , एक मजबूत ज़ंजीर भी डाल कर रखते हैं ! घाटों के दोनों और पक्के पुखते होते हैं , जिस से घाट पर जल का प्रवाह कुत्छ कम हो जाता है और उन्ही पुख्तों में  जंजीर भी बाँध देते हैं!
कुत्छ स्थानीय युवक गंगाजी में स्नान करने आते हैं, इस बार भी, काफी युवक  आये थे ! यह युवक , उन पुख्तों से कूद कूद कर गंगा जी में तैर  कर कुत्छ दूर जाते, फिर पास ही से वापिस आ कर , कूदना, तैरना, निकलना करते ही रहते थे ! बड़ा अछा लगता था, इच्छा होती की मैं भी  ऐसा करूं, जब यह कर सकते हैं तो मैं  कियों नहीं कर सकता ?
मैं  छोटा ही रहा होंगा लग भग १० वर्ष का ! कई बार पुखते पर गया , मन करता कि मैं भी कूद कर यही आनंद लूं जो यह युवक ले रहे हैं! किसी अन्तेह कर्ण की प्रेरणा से बस नहीं कूदा ! बच गया, कंही, कूद गया होता तो, पास में भंवर भी, था, मुझे तो तैरना भी नहीं आता था ! अभी भी तैरना नहीं आता! अब कभी सोचता हूँ , क्लोन करता हूँ उस समय की इस घटना की तो, बस भगवान में विश्वास और बढ़ जाता है कि
उनकी प्रेरणा से  मैं नहीं  कूदा ! God takes care of every one especially the children who are ignorant of certain actions and their results.